मेरे पड़ोस में दो परिवार हैं जिनके बड़े एक दूसरे के साथ बहुत झगड़ा करते हैं। हालांकि, बच्चे एक साथ बड़े हुए हैं और इसलिए, इस तिथि तक एक साथ जुड़े हुए हैं। नतीजतन, वयस्कों को अपने मतभेदों को कभी-कभी अलग रखना पड़ता है और साथ आने का प्रयास करना पड़ता है क्योंकि वे जानते हैं कि यह बच्चों के सर्वोत्तम हित में है।
भारत और पाकिस्तान इन दो परिवारों की तरह हैं। तमाम प्रतिद्वंद्विता, राजनीति और गर्मजोशी के बीच, दोनों देशों के नागरिक धार्मिक विश्वासों, संस्कृति और इतिहास को साझा करते हैं।
मेरा मानना है कि यही अंततः सीमा के दोनों ओर के लोगों के लिए शांतिपूर्ण समय की शुरूआत करेगा।
हाल ही में जो हुआ वह मेरे विश्वास को प्रमाणित करता है।
सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी की 550 जयंती के उपलक्ष में दोनों देशों के प्रमुखों यानी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पाकिस्तान समकक्ष इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया।
करतारपुर कॉरिडोर क्या है?
श्री गुरु नानक देव जी दुनिया भर में अपनी यात्राएं पूरी करने के बाद 1520 और 1522 के बीच रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के करतारपुर में आकर बस गए।
यहाँ उन्होंने लोगों को ज्ञान और ईश्वर के साथ मिलन का मार्ग दिखाने के लिए उपदेश दिए जिसमे से एक था- “नाम जपो, कीरत करो, वंद छको” जिसका अर्थ है सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करना, कड़ी मेहनत करना, और जो कुछ भी हो उसे सभी के साथ साझा करना ।
करतारपुर में ही वह ब्रम्हलीन हुए। इसलिए, गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर का निर्माण भक्तों के लिए किया गया था ताकि वे गुरु नानक देव के जीवन और शिक्षाओं का आकर सम्मान कर सकें।
गुरदासपुर, भारत में श्री डेरा बाबा नानक साहिब है।
करतारपुर कॉरिडोर 4.7 किलोमीटर लंबा गलियारा है जो भारत और पाकिस्तान के इन दो पवित्र सिख गुरद्वारों को जोड़ता है।
यह भारतीय श्रद्धालुओं को सिख धर्म के संस्थापक की 550 वीं जयंती के ऐतिहासिक अवसर पर वीजा के बिना करतारपुर की यात्रा करने की अनुमति देगा। हालांकि, 20 अमेरिकी डॉलर का शुल्क और पासपोर्ट इसके लिए आवश्यक होगा।
देखते हैं इतिहास क्या कहता है
करतारपुर कॉरिडोर को पहली बार 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों नवाज शरीफ द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
पाकिस्तान ने करतारपुर में गुरुद्वारे को पुनर्जीवित किया और इसे दूरबीन के माध्यम से भारतीय सीमा से देखा जा सकता था। कारगिल युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव के कारण परियोजना को हटा दिया गया था।
2004 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत और पाकिस्तान के बीच एक समग्र बातचीत की शुरुआत की जिसमें उन्होंने अमृतसर-लाहौर-करतारपुर सड़क गलियारे पर चर्चा की।
हालांकि, 2008 में जब मुंबई में हमले हुए तब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध टूट गए थे। परिणामस्वरूप, गलियारे की परियोजना को बंद किया गया।
अगस्त 2018 में पंजाब के तत्कालीन पर्यटन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। वहां उन्हें डेरा बाबा नानक-करतारपुर गलियारे को लागू करने के पाकिस्तान के इरादे का पता चला। इससे चीजों में गति आ गई।
भारतीय कैबिनेट ने गलियारे को बनाने के लिए नवंबर 2018 में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार द्वारा प्रस्तावित योजना को मंजूरी दे दी।
9 नवंबर 2019 को गलियारे का उद्घाटन किया गया और 550 भारतीयों के पहले जत्थे को करतारपुर जाने के लिए इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई।
भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए एक सकारात्मक कदम
मुझे लगता है कि यह दोनों देशों के लिए यह एक सकारात्मक कदम है।
यह पाकिस्तान के पर्यटन उद्योग और अर्थव्यवस्था को एक गति प्रदान करेगा, जो अब तक आर्थिक रूप से अपंग है। इससे भी महत्वपूर्ण बात, यह जनता के बीच पीएम इमरान खान की लोकप्रियता को बढ़ावा देगा।
भारत के लिए, इस गलियारे का बहुत इंतजार किया गया था, खासकर सिख श्रद्धालुओं द्वारा। पीएम मोदी इस कॉरिडोर परियोजना के ध्वजवाहक बनकर सिख अल्पसंख्यक को खुश करने में सफल रहे हैं।
क्या कार्तपुर कॉरीडोर शांतिपूर्ण वार्ता का नेतृत्व कर सकता है या यह अभी भी एक दूर की कौड़ी है?
Sources: The Economic Times, The Quint, The Indian Express
Image Sources: Google Images
Originally Written By: @thinks_out_loud
Translated in Hindi By: @innocentlysane
You May Also Like To Read: