हमारे पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कोई रहस्य नहीं है। वह किसी भी रियलिटी शो या डेली सोप की तुलना में अधिक स्क्रीन टाइम पा रहे हैं, उनकी तस्वीरें और पोस्टर हर सड़क पर और हर सार्वजनिक कार्यालय में हैं।

कुछ दिन पहले, 9/11 हमले की बरसी थी । हालाँकि, जब पूरी दुनिया मासूम पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत का शोक मना रही थी, भारतीय मीडिया कुछ और करने में व्यस्त थी।

9 सितंबर 2019 को प्रसिद्ध पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्विटर पर नरेंद्र मोदी का एक वीडियो साझा किया। उन्होंने कहा कि वीडियो उस अंतिम बहस का था जिसमें मोदी ने भाजपा के प्रवक्ता के रूप में भाग लिया और चूंकि बहस का विषय 9/11 का आतंकवादी हमला था, इसलिए उन्हें मोदी की याद आ गयी।

यह देखकर, मेरा मानना ​​है कि भारतीय मीडिया मोदी से इतना अधिक प्रभावित है कि वे अन्य घटनाओं पर ध्यान नहीं देते हैं और अगर वे करते भी हैं तो भी वे इससे मोदी से जोड़ देते हैं।

मैं दुनिया भर में होने वाली घटनाओं पर गहरी नजर रखती हूं और मैं डिबेट शोज़ और पैनल डिस्कशन को रोज़ाना देखती हूँ। यह सब देखने के बाद मेरी समीक्षा यह कहती है कि मोदी का नाम हर बार चर्चा में घसीटा जाता है, चाहे चर्चा का विषय कुछ भी हो।

अरुण जेटली की मृत्यु का मोदी कनेक्शन

मैं कानूनी पृष्ठभूमि से आती हूँ और कानून की छात्र होने के नाते, मैं अरुण जेटली के नाम से बचपन से वाकिफ हूं और उनकी उपलब्धियों का उल्लेख मेरे लिए नया नहीं है।

वह बीजेपी के उन सदस्यों में से एक थे जिन्होंने बीजेपी को उचाईयों तक पहुंचाया। इसके अलावा, एक वरिष्ठ और प्रख्यात वकील और एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में उनकी उपलब्धियाँ कोई कम नहीं थीं।

जब उनका स्वर्गवास हुआ, तो मैं इंतज़ार कर रही थी कि मीडिया उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताने के साथ-साथ समाज के लिए अपनी उपलब्धियों और योगदान के बारे में बात करे।

हालाँकि, अरुण जेटली की छवि को “मोदी का दोस्त” के रूप में दर्शाया गया।

खैर, पीएम ने एक दोस्त को खो दिया, इसमें कोई दो राये नहीं हैं लेकिन वह सिर्फ मोदी के दोस्त से अधिक थे और अरुण जेटली के व्यक्तिगत व्यक्तित्व पर देश का ध्यान आकर्षित करना ज़रूरी था, जो दुर्भाग्य से, नहीं हुआ।


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स्थानीय मामले और मोदी

चाहे वह राज्य में हुए अपराध हों या विकास के लक्ष्यों के बारे में बात हो, हम हर जगह मोदी जी के ही सन्दर्भ में ही बात करते हैं।

अपराधों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में असामाजिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है, लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ पर सवाल उठाने के बजाय, मीडिया हेडलाइन कहती हैं “मोदी के योगी, ये क्या हो रहा है”।

क्या जवाबदेही मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पर डालना गलत नहीं है? यह फैसला मैं आप पर छोड़ती हूँ।

जहाँ तक विकासात्मक गतिविधियों की बात है, मोदी का ‘गुजरात मॉडल’ सुप्रसिद्ध है, लेकिन हम मोदी जी के नाम को शामिल किए बिना, इसे स्पष्ट रूप से ‘गुजरात मॉडल ऑफ़ डेवलपमेंट’ के रूप में भी लोकप्रिय बना सकते हैं परन्तु मीडिया ऐसा होने नहीं देती है।

हर अच्छे बुरे मुद्दे पर मोदी का नाम घसीटने से बेहतर हमारे देश की मीडिया को ज़मीनी मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।


Image Sources: Google Images

SourcesEconomic TimesEconomic TimesNews 18

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