भारत के अमीर और अमीर, परन्तु गरीब और गरीब क्यों होते जा रहें हैं?

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भारत में असमानता हमेशा से रही है। हालांकि, हाल के समय में, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के बाद, यह आसमान छूने लगी है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब भारत में 40 और अरबपति जुड़े, तब 46 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए।

यह क्यों है कि भारत के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं? जब भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में रैंक करता है, तो असमानता कैसे बढ़ रही है?

यहां एक विस्तृत चित्र है।

1991 के सुधार:

भारत की प्रति व्यक्ति आय, यानी देश में हर व्यक्ति की औसत आय, पिछले दो दशकों में $442 से $2,389 तक बढ़ी है। हालांकि, सच्चाई यह है कि यह आय केवल शीर्ष 1% जनसंख्या के पास है, जबकि गरीबों की स्थिति उसी समय में और भी बदतर हो गई है।

इसके अतिरिक्त, राज्यों में आय का वितरण भी असमान है। वे राज्य जो कुल जनसंख्या के 42% को आवासित करते हैं, उनके पास बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) में रहने वाले लोगों का 62% है।

भारत को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है, फिर भी ऑक्सफेम (गरीबी के खिलाफ काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संघ) द्वारा 2017 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की 10% जनसंख्या के पास देश की 80% संपत्ति है।

स्वतंत्रता के बाद, भारत में समाजवाद की शुरुआत 1950 से 1980 के दशक तक हुई। इससे अमीरों के बीच आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण कम हुआ और राष्ट्रीय आय का वह हिस्सा जो शीर्ष 1% को मिलता था, वह आधा होकर 1951 में 12% से घटकर 1982 में 6% रह गया।

हालांकि, 1991 के सुधारों की शुरुआत के बाद, जिनसे देश में उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण का जन्म हुआ, असमानता ने कोई सीमा नहीं देखी। परिणामस्वरूप, नीतियों ने अमीरों को गरीबों से बिना किसी परिणाम के लाभ कमाने की शक्ति दी।

इस तथ्य को विश्व असमानता डेटाबेस (डब्लूआईडी) के डेटा से भी समर्थन मिलता है, जो दिखाता है कि 1991 के सुधारों के बाद राष्ट्रीय आय में शीर्ष 1% का हिस्सा स्थिर रहा, जबकि निचले 50% का हिस्सा मामूली वृद्धि देखी।

डब्लूआईडी डेटा यह भी दर्शाता है कि 1991 के बाद, अमीरों की वास्तविक आय असाधारण रूप से बढ़ी, जबकि गरीबों की आय में मामूली वृद्धि हुई।

भारत के वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (एएसआई) के डेटा से भी यह साबित होता है कि 1991 के सुधारों के बाद असमानता कई गुना बढ़ी। भारत के औपचारिक क्षेत्र में 1981-82 में शुद्ध मूल्य वर्धन, जिसे किसी उत्पाद के निर्माण प्रक्रियाओं के बाद मूल्य में वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है, 14,500 करोड़ रुपये था, जिसमें से लगभग 30% मजदूरों को वेतन के रूप में मिला था, जबकि 23.4% फैक्ट्री मालिकों और शेयरधारकों को लाभ के रूप में मिला था।

उदारीकरण के बाद, एएसआई के अनुसार मजदूरों द्वारा प्राप्त वेतन का हिस्सा तीव्रता से घट गया। 2019-20 तक, शुद्ध मूल्य वर्धन 12.1 लाख करोड़ रुपये बढ़कर, जिसमें से केवल 18.9% मजदूरों को वेतन के रूप में और 38.6% मालिकों को लाभ के रूप में मिला।


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जीएसटी:

डेटा यह भी बताता है कि 2017 में लागू किए गए वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) भी भारत में आय असमानता के अंतर को बढ़ाने वाले प्रमुख कारणों में से एक है।

सरकार ने हाल के वर्षों में प्रत्यक्ष करों को कम किया है और अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाया है। प्रत्यक्ष कर वह कर है जो व्यापारों को उनके मुनाफे पर और लोगों को उनकी निश्चित आय से ऊपर आय पर चुकाना होता है, जबकि अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो देश के हर नागरिक को, चाहे उनकी आय कोई भी हो, वस्त्रों और सेवाओं की खरीद-बिक्री पर चुकाना होता है।

जीएसटी ने अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाया है, जिससे संपन्न और कम संपन्न वर्ग को एक ही प्लेटफॉर्म पर ला खड़ा किया है। सभी पर कर का बोझ समान रूप से बढ़ाने की आलोचना कई लोगों ने की है।

उदाहरण के लिए, ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट “सर्वाइवल ऑफ़ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी”, जो नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ), क्रेडिट स्विस डेटा और फोर्ब्स डेटा पर आधारित है, ने जीएसटी और अमीरों के लिए कर छूटों के संयोजन को देश में आय असमानता बढ़ाने का मुख्य कारण बताया है।

रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि चल रही असमानता की समस्या से निपटने के लिए प्रगतिशील कराधान का इस्तेमाल किया जाए।

जैसा कि भारत 2027-28 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह केवल समाज के एक वर्ग के लिए न हो। यहीं पर आर्थिक वृद्धि और विकास के बीच अंतर को समझने की आवश्यकता है।

विकास में मानव विकास सूचकांक (एचडीआई), जीवन स्तर और सभी के लिए प्रति व्यक्ति आय में सुधार भी शामिल है। इसलिए, समाज के समग्र लाभ के लिए नीतियों को लागू करना, इस समय की आवश्यकता है ताकि इस महत्वपूर्ण समस्या का समाधान किया जा सके।


Sources: Deccan Herald, CNN, The News Minute

Originally written in English by: Unusha Ahmad

Translated in Hindi by Pragya Damani

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