सम्राट अकबर के राष्ट्र पिता होने का दावा करके, पूर्व न्यायमूर्ति मार्कंडे काटजू ने एक नया विवाद बनाया है। भारत में महात्मा गांधी को ‘राष्ट्र पिता’ का दर्जा प्राप्त है वहीं पाकिस्तान में ये दर्जा मोहम्मद अली जिन्नाह के नाम है। पर अब अपने एक लेख से इस दर्जे को मार्कंडे काटजू ने चुनौती दी है।
कौन थे अकबर
अकबर मुग़ल साम्राज्य के उस बादशाह का नाम है जिसे सामाजिक और धार्मिक सौहार्द स्थापित करने के लिए जाना जाता है। अकबर ने 14 साल की उम्र में मुग़ल साम्राज्य का भार सभाल लिया था क्यूंकि उनके पिता हुंमायुं की तब मृत्यु हो गयी थी और गद्दी के वो ही हक़दार थे।
अकबर ने न सिर्फ मुग़ल साम्रज्य का विस्तार विस्तार किया पर समाज में धार्मिक सद्भावना पर भी ज़ोर दिया।
गाँधी क्यों हैं भारत के राष्ट्र पिता
मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा गाँधी की उपाधि से भी जाना जाता है जो उन्हें रबिन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी।
महात्मा गाँधी स्वतंत्रता सैनानी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने अहिंसा की राह पर चल के , सत्याग्रह करके हिन्दुस्तान को न सिर्फ आज़ादी दिलाई परन्तु भारतियों को आत्मनिर्भरता का सन्देश भी दिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा महात्मा को राष्ट्रपिता का शीर्षक दिया गया था।
उन्होंने 6 जुलाई 1944 में सिंगापुर रेडियो पर उनके संबोधन में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में संबोधित किया था। इसके बाद 28 अप्रैल, 1947 को गांधी को एक सम्मेलन में सरोजनी नायडू ने इसी उपाधि से सम्बोधित किया था जिसके बाद उन्हें राष्ट्रपिता की अघोषित उपाधि मिल गयी।
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क्या कहते हैं पूर्व न्यायाधीश
पूर्व न्यायमूर्ति श्री मार्कंडे काटजू का कहना है की हम भारतीय अकबर द्वारा रखी गई ठोस नींव का परिणाम हैं जो शायद दुनिया के सबसे बड़े शासक थे। अकबर के कारण, हम आज न सिर्फ हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों , ईसाई, जैन, पारसी, आदि परन्तु भारतीय हैं।
उनके अनुसार अकबर ने सुलेह-ए-कुल की बुद्धिमान नीति को अपनाया, अर्थात, सभी धर्मों में सदभाव कायम करने की नीति अपनायी जिसकी वजह से आज भारत एक संयुक्त राष्ट्र है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ सौहार्द के साथ रहते हैं।
2011 में हिंसा विरोधाक संघ बनाम मिर्जापुर मोती कोरेश जमात में सुप्रीम कोर्ट के उनके फैसले में उन्होंने कहा था
“आधुनिक भारत का वास्तुकार महान मुगल सम्राट अकबर थे जिन्होंने सभी समुदायों के लोगों को समान सम्मान दिया और उन्हें उच्चतम कार्यालयों उनके गुणों के आधार पर उन्हें नियुक्त किया, उनके धर्म, जाति को नज़रअंदाज़ करते हुए “
भारत की खोज किताब से जवाहरलाल नेहरू का हवाला देते हुए,पूर्व न्यायमूर्ति ने कहा कि
“अकबर की सफलता आश्चर्यजनक है, क्योंकि उन्होंने भारत के विभिन्न तत्वों में एकता की भावना पैदा की। अंग्रेजों ने क्यों छोड़ा? निश्चित रूप से, यह गांधी के नाटकों के कारण नहीं हुआ।क्या कोई इस वजह से साम्राज्य छोड़ देता है? एक वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम हमेशा एक सशस्त्र संघर्ष होता है, क्योंकि कोई साम्राज्यवादी अपने साम्राज्य को सशस्त्र लड़ाई के बिना नहीं छोड़ देता है।”
उनके इस वक्तव्य से महात्मा गाँधी की छवि का तिरस्कार हुआ। न्यायाधीश महोदय को ये याद रखना चाहिए के भारत अकबर को नहीं भूला है परन्तु वो एक पराधीन भारत का राजा था और गाँधी ने स्वतंत्रता का सपना देखा।
गाँधी जी के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता।
Image Source: Google Images
Sources: Dailyo, Firstpost, Biography
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