झारखंड राज्य इस महीने होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए कमर कस रहा है। हालांकि, चुनाव लड़ने वाले राजनेताओं के लिए राज्य के इतिहास का एक अध्याय उनके सपनों के लिए एक बड़ा खतरा है – पत्थलगड़ी आंदोलन।
पत्थलगड़ी आंदोलन
‘पत्थलगड़ी ‘का शाब्दिक अर्थ है पत्थरों को बिछाना। पत्थलगड़ी आंदोलन झारखंड के आदिवासी समुदायों से शुरू हुआ जो राज्य के चार जिलों में विशाल पत्थर पट्टिकाएं स्थापित कर रहे हैं, जैसे कि खुंटी, गुमला, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहबाम।
इन जिलों में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का सबसे पहले इन विशाल हरे रंग की पट्टियों से अभिवादन किया जाएगा जिसका माप 15 फीट 4 फीट होगा। लेकिन किसी भी अन्य पत्थर की संरचना से इन्हे अलग करने का मतलब यह है कि उन पर भारत के संविधान के प्रावधानों को उकेरा गया है जो आदिवासियों को विशेष स्वायत्तता का संकेत देते हैं।
उन पर उत्कीर्ण संदेशों में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के अंश हैं और बाहरी लोगों के लिए चेतावनी है जिसमे उन्हें इन गांवों में प्रवेश करने से प्रतिबंधित करना शामिल है।
पत्थलगड़ी आंदोलन से जनजातीय समुदाय सांसदों को संकेत देते है कि संसदीय कानून उनकी भूमि में लागू नहीं होते हैं।
आंदोलन की जड़ें
पत्थलगड़ी आंदोलन एक जागरूकता अभियान के रूप में शुरू हुआ जो आदिवासी लोगों को नागरिकों के रूप में उनके अधिकारों के बारे में प्रबुद्ध करने के लिए शुरू किया गया था। हालांकि, जैसे-जैसे यह आंदोलन बड़ा हुआ, यह उग्र हो गया।
छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (CNT) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (SNT) आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाकरसामुदायिक स्वामित्व की रक्षा करते हैं। जब 2014 में भाजपा ने राज्य की कमान संभाली थी तब इन कानूनों में संशोधन करने के लिए उनका एक मजबूत झुकाव था।
बड़े पमाने पर विरोध के बावजूद सरकार विकास संबंधी परियोजनाओं की सुविधा के लिए भूमि अधिग्रहण को मंज़ूरी देने के लिए आगे बढ़ी। हालाँकि, आदिवासी समुदायों पर यह ‘विकास’ थोपना जायज़ नहीं है।
इन संशोधनों के विरोध में पत्थलगड़ी आंदोलन पूरी तेजी के साथ बढ़ा, सरकार पर बड़े कारपोरेटों के साथ जठजोड़ का आरोप लगाया गया। आखिरकार आंदोलन सफल हुआ और सरकार ने संशोधन विधेयक वापस ले लिया।
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नतीजे
पत्थलगड़ी आंदोलन ने युवा मन के एक विद्रोह को देखा, जो सर्वसम्मति से सहमत थे कि उनके लोगों और उनकी भूमि को ग्राम-पंचायतों द्वारा शासित होना चाहिए, राज्य या केंद्र सरकारों के किसी भी प्रभाव के बिना।
इसके कारण लोगों ने आधार कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज़ों को आदिवासी विरोधी मानना शुरु कर दिया।
धीरे-धीरे, शासन की मौजूदा प्रणालियों के प्रति घृणा विकसित हुई और लोगों को इस वर्ष के प्रारंभ में आयोजित आम चुनावों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया गया।
राजद्रोह का आरोप
इस तरह के चरम फैसलों के लिए इस साल लगभग 10,000 आदिवासियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के तहत देशद्रोह का आरोप लगाया गया था।
झारखंड के आदिवासियों का दृढ़ता से मानना है कि पत्थलगड़ी आंदोलन के माध्यम से उन्हें अपने संवैधानिक अधिकार मांगने के लिए दंडित किया जा रहा है। इससे उनकी यह धारणा मजबूत हुई है कि देश के कानून उनकी रक्षा के लिए नहीं, बल्कि उन्हें पीड़ा देने के लिए खड़े हैं।
आगामी चुनावों के लिए एक संकट
उनमें एक नई ऊर्जा भरने के साथ, पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थकों ने विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने का संकल्प लिया है। यदि सरकार उनकी समस्याओं को सुनने के लिए तैयार नहीं है, तो वे ऐसी किसी भी चीज़ का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं जो सरकार से किसी भी प्रकार जुड़ी हुई है।
यह निर्णय चर्चा के योग्य है। एक ओर हमारे पास ऐसे समुदाय हैं जो वर्षों से उपेक्षित और त्रस्त हैं और दूसरी ओर हमारे पास भारत के संविधान जैसी मज़बूत प्रणाली है।
Image Credits: Google Images
Sources: Scroll.in, The Hindu, The Indian Express
Written In English By @NandanaNair19
Translated in Hindi By @innocentlysane