‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ कुछ समय से एक बहुत ही विवादास्पद विधेयक रहा है। संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 यह प्रस्ताव करता है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ पांच साल की तय अवधि के लिए कराए जाएं।
यह यह भी सुझाव देता है कि यदि इस अवधि के दौरान कोई विधानसभा भंग हो जाती है, तो एक नया चुनाव मध्यावधि चुनाव के दौरान कराया जाएगा। हालांकि, नई विधानसभा का कार्यकाल पिछले कार्यकाल की शेष अवधि तक ही सीमित होगा।
सितंबर 2023 में भारत सरकार द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था, ताकि यह जांच की जा सके कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक देश में व्यवहार्य है या नहीं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी।
हाल ही में, लोकसभा ने ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’ और ‘केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024’ को संसद में पेश करने के प्रस्ताव को पारित किया।
विशेषज्ञों की राय क्या है?
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा ने इसके संभावित फायदे और नुकसान को लेकर काफी बहस छेड़ दी है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, अगर इसे अंततः मंजूरी मिलती है, तो यह भारत के संविधान और चुनाव प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर संशोधन का कारण बनेगा, इसलिए इसे ठीक से लागू किया जाना चाहिए।
भारत के वरिष्ठ अधिवक्ता और शीर्ष संवैधानिक विशेषज्ञों में से एक हरीश साल्वे ने विपक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है। इंडिया टुडे से बात करते हुए उन्होंने कहा, “जो लोग कहते हैं कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है, वे बिना सोचे-समझे बयान दे रहे हैं। हर भारतीय इसमें भागीदार है। यह केवल राजनेताओं के लिए नहीं है।”
साल्वे ने इस आरोप पर टिप्पणी करते हुए कि यह राज्यों को भारत संघ के सामने कमजोर बना सकता है, कहा, “राज्य हमेशा उसी पार्टी द्वारा संचालित किए जाएंगे जिसे राज्य के लोग चुनते हैं… यदि एक निर्वाचित सरकार गिर जाती है तो क्या होता है? यह संवैधानिक रूप से गारंटी नहीं है कि आप 5 साल तक चल सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “मतदाता बहुत समझदार, परिपक्व और बुद्धिमान हैं। राजनेताओं को इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए।”
हालांकि, साल्वे ने यह भी कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को जल्दी लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “एक राष्ट्र, एक चुनाव अगले 3–5 वर्षों में लागू नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक बड़ा राष्ट्रीय संवाद होना चाहिए। सरकार को बड़े सार्वजनिक मतों की सहमति बनानी होगी।”
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गिल्स वर्नियर ने इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में लिखा, “ओएनओई के आलोचकों ने चुनावी प्रक्रिया को राष्ट्रीय बनाने के खतरे की बात उठाई है। ‘एक राष्ट्र…’ से शुरू होने वाले सभी सुधारों की तरह, ओएनओई का उद्देश्य सत्ता का केंद्रीकरण और समेकन करना है। एक साथ चुनावी व्यवस्था में राष्ट्रीय व्यक्तित्व वाले मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं।”
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि ओएनओई से चुनावी खर्च बचाने की बात सही नहीं है क्योंकि खर्च ज्यादातर चुनाव प्रचार में पार्टियों द्वारा किया जाता है, न कि चुनाव की प्रक्रिया में।
पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने भी ओएनओई पर टिप्पणी करते हुए कहा, “समानांतर चुनाव कराने का उद्देश्य सही लगता है। व्यक्तिगत रूप से इसमें कुछ भी गलत नहीं है,” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “संविधान केवल यह कहता है कि चुनाव होने चाहिए। यह निर्धारित नहीं करता कि चुनाव समानांतर हों या अलग-अलग समय पर। इससे सरकारों को विकास, बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने का अधिक समय मिलेगा, जो देश को आगे बढ़ा सकता है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी भी ओएनओई से सहमत नजर आते हैं। उन्होंने कहा, “हमें चुनावों का राष्ट्र नहीं बनना चाहिए। पूरे साल चुनाव कराने में व्यावहारिक समस्याएं हैं। इस कानून ने इन मुद्दों को संबोधित किया है।”
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “यह विचार मतदाताओं को असुविधा से बचाने और पैसा बचाने का लगता है क्योंकि किसी भी चुनाव में खर्च शामिल होता है। लेकिन हम 75 साल से इस व्यवस्था में काम कर रहे हैं। समानांतर चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है। मुझे इसे लागू करने की जरूरत समझ में नहीं आती।”
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने भी स्वीकार किया कि यह एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है और इसे बहुत सावधानी से निपटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “इस कानून पर स्वस्थ चर्चा होनी चाहिए क्योंकि इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। सवाल यह है कि समानांतर चुनाव कितने समय तक जारी रह सकते हैं। मान लीजिए अगर आप समानांतर चुनाव कराते हैं, तो इसमें लगभग तीन महीने लग सकते हैं, और इस दौरान सब कुछ ठप हो जाएगा।”
यह भी देखा गया है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक के लोकसभा में पारित होने को लेकर फर्जी खबरें फैलाई जा रही हैं। यह सच नहीं है क्योंकि संसद ने इसे केवल पेश करने की मंजूरी दी है, इसे पारित नहीं किया है।
डेक्कन हेराल्ड द्वारा किए गए फैक्ट-चेक के अनुसार, दो विधेयक, ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’ और ‘केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024’ को 17 दिसंबर 2024 को कानून और न्याय मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) और संसदीय मामलों के राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा पेश किया गया था। ये दोनों विधेयक ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ अवधारणा का हिस्सा हैं।
वोटिंग में 269 सांसदों ने पक्ष में और 198 सांसदों ने विरोध में वोट डाले। यह वोटिंग केवल यह तय करने के लिए थी कि विधेयकों को संसद में पेश किया जाए या नहीं।
Image Credits: Google Images
Sources: The Economic Times, Hindustan Times, Deccan Herald
Originally written in English by: Chirali Sharma
Translated in Hindi by Pragya Damani
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