तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान के नए प्रधान मंत्री हसन अखुंद के नेतृत्व में तालिबान सरकार के गठन की घोषणा की। इसने एक कैबिनेट का भी गठन किया है और राज्य के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन की देखभाल के लिए विभिन्न मंत्रियों को नियुक्त किया है।

कश्मीर मुद्दे पर तालिबान सरकार

तालिबान सरकार अब अफगानिस्तान पर शासन करने के लिए तैयार है, जो एक आतंकी संगठन द्वारा शासित होने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।

इस निंदनीय विकास ने भारत में कश्मीर की घाटी में आतंकवाद और सुरक्षा के मुद्दों पर गंभीर चिंता जताई है।

हाल ही में, बीबीसी उर्दू के साथ एक साक्षात्कार में, तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा, “मुसलमान होने के नाते, हमें यह अधिकार है कि हम कश्मीर, भारत और किसी भी अन्य देश में मुसलमानों के लिए अपनी आवाज़ उठाएं।”


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हालांकि, तालिबान नेताओं ने स्पष्ट किया कि उनका कश्मीर को भारत का ‘द्विपक्षीय और आंतरिक मामला’ बताते हुए अन्य देशों की शांति का उल्लंघन करने का इरादा नहीं है।

कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई से मुलाकात की और भारत की चिंताओं से अवगत कराया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

कश्मीर में उग्रवाद

कश्मीर घाटी 1989 से उग्रवादी विद्रोह का एक सक्रिय क्षेत्र रहा है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे विदेशी आतंकवादी समूहों द्वारा घुसपैठ 1999 में शुरू हुई जब उन्होंने आत्मघाती हमलों (फियादीन) की प्रथा शुरू की।

बेरोजगारी और आतंकवादी संगठनों द्वारा युवाओं के कट्टरता जैसे कारकों ने कश्मीर घाटी में उग्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर में विदेशी आतंकवादियों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। पाकिस्तान की सीमा से लगे उत्तरी कश्मीर में अब 40 से 50 विदेशी आतंकवादी और 11 स्थानीय आतंकवादी सक्रिय हैं। यह पहली बार है कि इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों की तुलना में अधिक विदेशी आतंकवादी हैं।

तालिबान सरकार के बीच कश्मीर का भविष्य

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के गठन को विश्लेषकों द्वारा कश्मीर में हिंसा की एक नई लहर और बढ़े हुए उग्रवादी विद्रोह के पूर्वाभास के रूप में देखा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शेष पॉल वैद ने डीडब्ल्यू को बताया, “तालिबान के अधिग्रहण से न केवल कश्मीर प्रभावित होगा बल्कि पूरा दक्षिण एशिया भी प्रभावित होगा।”

“तालिबान के अधिग्रहण का कश्मीर घाटी सहित दुनिया भर में सक्रिय सभी आतंकवादी समूहों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनका मनोबल बढ़ा है।”

वैद ने तर्क दिया कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने में तालिबान की मदद की और यह अस्पष्ट है कि तालिबान बदले में उनकी मदद करेगा या नहीं।

इस बात की आशंका है कि अन्य आतंकी संगठन अफगानिस्तान में तालिबान के शासन का फायदा उठाकर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं।

“पाकिस्तान की आईएसआई तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती है और पाकिस्तान के आईएसआई में अपने प्रशिक्षण शिविरों को स्थानांतरित कर सकती है, तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती है और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में अपने प्रशिक्षण शिविरों को अफगानिस्तान के क्षेत्रों में स्थानांतरित कर सकती है”, शेष पॉल वैद ने पाकिस्तान की खुफिया जानकारी का जिक्र करते हुए तर्क दिया।

तालिबान सरकार के साथ पाकिस्तान और चीन की बढ़ती आत्मीयता भारत के लिए एक लाल संकेत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह उभरती हुई भू-राजनीतिक स्थिति कश्मीर में बढ़ते उग्रवाद और आतंकवाद का अग्रदूत है। यह आंधी से पहले का सन्नाटा है।

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बीच कश्मीर की स्थिति गंभीर बनी हुई है। जबकि भारत सरकार बातचीत और नई रणनीतियां बनाकर स्थिति से निपटने की तैयारी कर रही है।


Image Credits: Google images

Sources: Hindustan TimesBBCThe Hindu

Originally written in English by: Richa Fulara

Translated in Hindi by: @DamaniPragya

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