रावण भारतीय पौराणिक कथाओं के सबसे ज़्यादा निंदनीय खलनायकों में से एक है। वह बुराई का प्रतीक है और दशहरा के शुभ दिन पर, उसके पुतले को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हुए जला दिया जाता है।
पर ये बात भी गलत नहीं है के रावण एक बहुत ही धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था। उसे भगवन शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। यह भी कहा जाता है की रावण बहुत विद्वान था और उसे चारों वेदों, छह शास्त्रों और दसों दिशाओं का ज्ञान था।
रामायण की कुछ क्षेत्रीय व्याख्याओं के मुताबिक यह भी कहा जाता है की सीता रावण की ही बेटी थी जो राजा जनक को मिल गयीं थी और रावण यह बात जानता था। वह यह भी जानता था के राम भगवन विष्णु के अवतार है और मोक्ष प्राप्ति के लिए उसने सीता हरण कर राम से युद्ध करा।
रावण को दशानन और दशकंधर भी कहते है, मगर क्यों? रामायण के अनुसार रावण के दस सिर थे। क्या ऐसा मुमकिन है, क्या कोई भी इंसान दस सिरों के साथ जी सकता है, या फिर हम अपने पौरणिक ग्रंथों को हूबहू पढ़ रहे हैं और उनकी गहराईयों में नहीं जा रहे।
दस सिर
यह कहा जाता है की रावण के दस सिर थे पर यह उसकी बुद्धिमता का प्रतिक है। पुराणों के अनुसार रावण को चारों वेदों, छह शास्त्रों और दसों दिशाओं का ज्ञान था और इसी लिए यह कहा जाता है के उसके दस सिर थे।
इसके अतिरिक्त, वह इतना बुद्धिमान था की उसका दिमाग एक सामान्य इंसान के दिमाग से 10 गुना ज़्यादा काम करता था जिसकी वजह से यह कहा जाने लगा के उसके दस सिर थे। इसके अलावा 10 सिर की बात इसलिए भी कही गयी हो सकती है क्यूंकि इंसान के शरीर में 10 इन्द्रियां होती हैं जैसे की :-
काम, क्रोध ,मोह, लोभ, मद, मात्सर्य, बुद्धि, मानस, चित्त, अहंकार
यह माना जाता है के यह 10 भौतिक कर्म हमारी नियति निर्धारित करते हैं और रावण के दुश्चरित्र के कारण उसे इन्ही इन्द्रियों ने अपने वश में कर लिया जिसकी वजह से उसका विनाश हो गया।
ब्रम्हास्त्र
ब्रम्हास्त्र का वर्णन कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। उसे संसार का सबसे शक्तिशाली अस्त्र कहा गया है और कहा जाता है के उसी के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण महाभारत के युद्ध में एक पूरी सभ्यता का नाश हो गया। ब्रम्हास्त्र की तुलना आज की तारिख के परमाणु शस्त्रों से भी की जा सकती है। परमाणु शस्त्रों का प्रभाव काफी खतरनाक होता है।
रामायण में, राम ने समुद्र रस्ते लंका जाने के लिए इसका उपयोग करने की कोशिश की। लेकिन समुद्र देव ने हथियार का उपयोग करने के बाद होने वाली तबाही के बारे में राम को बताया और समुद्र को न सुखाने और सभी प्राणियों के जीवन की रक्षा का अनुरोध किया।इसलिए, राम ने इसे ध्रुमातुली की ओर लक्षित किया, जो आधुनिक राजस्थान के स्थान पर गिर गया जिसकी वजह से यह एक रेगिस्तान बन गया।
बाद में, राम ने एक पुल का निर्माण करा, जो अभी भी भारत-श्रीलंका के बीच समुद्रा के नीचे मौजूद है।
पुष्पक विमान
पुष्पक विमान का ज़िक्र रामायण में मिलता है। यह पहली बार रामायण में हुआ के हिन्दू ग्रंथों में किसी उड़ने वाले उपकरण की बात हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा ने कुछ समय के लिए पुष्पक विमान का इस्तेमाल किया था जिसके बाद कुबेर को पुष्पक विमान मिला।
पुष्पक विमान आकाश में और बादलों के भीतर ऊँचा उड़ सकता था। पुष्पक विमान का इस्तेमाल स्वर्ग, नर्क, चंद्रमा, कैलाश आदि तक पहुंचने के लिए किया जा सकता था। आप बस नाम लें और यह आपको वहां ले जाएगा।
पुष्पक विमान किसी भी संख्या के यात्रियों को बिठाने की भारी क्षमता रखता था। भले ही विमान भर गया हो, फिर भी हमेशा एक सीट खाली रहती थी। यह थोड़ा कल्पनीय लग सकता है लेकिन वर्तमान में गणितज्ञों ने इस क्षेत्र पर बहुत सारे शोध किए हैं।
शायद हम अपने पौराणिक ग्रंथों के सार को कई बार समझने में नाकाम रह जाते हैं। शायद जिस ज़माने की बात पुराणों में की गयी है तब भी आज जितनी ही अच्छी तकनीक मौजूद थी परन्तु किसी त्रासदी के कारण वो विलुप्त हो गयी। जो भी हमारे ग्रंथों में लिखा है वो हमे एक सन्देश देता है। हमे आज ज़रूरत है के हम फिर से अपने ग्रंथों का अध्ययन करें और उनके सार को समझकर उसका अनुसरण करें।
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Sources: Sanskriti Magazine, Books Facts, Metaphysics Knowledge
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