दिल्ली-एनसीआर और कोलकाता में कुत्ते हो रहे हैं गायब; जानिए क्यों

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यह कहावत कि इंसान कुत्तों के लायक नहीं है, इस दिवाली के बाद और सच हो गई है। लोग अभी भी त्योहारी माहौल से बाहर नहीं आए हैं और बचे हुए पटाखे फोड़ रहे हैं, जिससे जानवरों को जो आघात झेलना पड़ रहा है, वह लगातार बढ़ता जा रहा है।

पशु पालक अभी भी अपने कुत्तों को ढूंढ रहे हैं, जो दिवाली के बाद से गायब हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे जानवरों की तस्वीरें और पोस्ट भरी पड़ी हैं, जो पटाखों के शोर से डरकर भाग गए हैं।

जानवरों पर दिवाली का प्रभाव

हर दिवाली, आवारा और पालतू कुत्ते तेज़ पटाखों के डर से अपने घर से भाग जाते हैं। पटाखों के शोर से होने वाले डर और आघात की वजह से उनकी यह हालत होती है। इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर ऐसे वीडियो भरे पड़े हैं, जिनमें कुत्ते कांपते हुए दिख रहे हैं, जबकि बच्चे उन्हें ‘फुलझड़ी’ से परेशान कर रहे हैं।

डॉग फीडर और रेस्क्यू ग्रुप वैगिंग टेल्स की को-ट्रस्टी मानसी रौतेला ने कहा, “मेरे दोस्त और मैं लगातार इस बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं—इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप्स पर। हम पैदल चलकर पोस्टर भी बांट रहे हैं, लेकिन कुत्तों का कोई पता नहीं चल रहा।”

यह समस्या केवल दिवाली तक सीमित नहीं है। अन्य त्योहार जैसे क्रिसमस, भाई दूज, और करवा चौथ भी सड़कों पर रहने वाले जानवरों के लिए यह पीड़ा लाते हैं।

गुरुग्राम की एक रेस्क्यूअर और फीडर छवि गोयल अपने आवारा कुत्ते सीनियर ओंजा को ढूंढ रही हैं, जो 25 अक्टूबर 2024 से गायब है, जब लोगों ने पटाखे फोड़ना शुरू किया था। उन्होंने कहा, “मैंने अपने कुत्ते के फीडिंग स्पॉट के पास लोगों को उस पर पटाखे फेंकते देखा। इन लोगों की शिकायत भी नहीं की जा सकती क्योंकि वे आसानी से कह देंगे कि वे तो बस खेल रहे थे।” उन्होंने अपने कुत्ते को ढूंढने वाले को 10,000 रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की है।

ऐसी संस्थाएं इन लापता कुत्तों को ढूंढने और उनकी देखभाल करने की पूरी कोशिश कर रही हैं। इनमें से कुछ कुत्ते दिवाली के बाद अपने घरों से 20-30 किलोमीटर दूर पाए गए हैं।

फरीदाबाद की उमा रमेश, जो पिछले 40 वर्षों से आवारा कुत्तों की देखभाल कर रही हैं, ने कहा, “सोशल मीडिया ने कभी भी मुझे मेरे कुत्ते ढूंढने में मदद नहीं की। जो काम करता है वह है दुकान मालिकों, आइसक्रीम विक्रेताओं, चायवालों और चौकीदारों से बात करना। दरअसल, ट्रैफिक पुलिस भी बहुत मददगार होती है।”


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और मानवीय दिवाली

विशेषज्ञों ने बार-बार यह पुष्टि की है कि उत्सव और त्योहारों के दौरान फोड़े गए पटाखे न केवल मनुष्यों के लिए हानिकारक होते हैं, बल्कि उनके आसपास के जानवरों के लिए भी। पशु चिकित्सक डॉ. दयानारायण बनर्जी ने कहा, “पटाखों से निकलने वाली आवाज़ या गरजते बादलों की गड़गड़ाहट कुत्तों के लिए दर्दनाक और असहनीय हो सकती है, क्योंकि उनकी आवाज़ के प्रति संवेदनशीलता अधिक होती है। प्रशिक्षित कुत्ते, जैसे पुलिस बल या बम दस्ते में शामिल कुत्ते, इन अचानक आने वाली आवाज़ों के आदी हो सकते हैं। लेकिन अधिकतर कुत्ते ऐसी स्थिति में घबरा जाते हैं।”

पेटा (पिपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि पटाखे जानवरों के लिए भावनात्मक और मानसिक तनाव का कारण बनते हैं। पेटा की रिपोर्ट के अनुसार, “पटाखों के कारण जानवरों को मानसिक टूटन का सामना करना पड़ सकता है और उनकी सुनने की क्षमता पर गंभीर असर पड़ सकता है।”

इस समस्या का अभी तक कोई व्यावहारिक समाधान नहीं निकाला जा सका है। इस दिवाली, कुछ राज्यों ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन शोर करने वाले पटाखों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

“यह पालतू जानवरों के लिए बहुत ही भयानक समय होता है। मेरे कुत्ते एक मिनट के लिए भी मुझसे दूर नहीं रहना चाहते थे। जैसे-जैसे शाम बढ़ती गई, शोर के उल्लंघनों की संख्या बढ़ती गई। अगर उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता, तो वे बेहद घबराए और बेचैन हो जाते,” कोलकाता में रहने वाली चंद्राणी गुहा ने कहा, जिन्होंने सड़क
से तीन कुत्तों को अपनाया है।

जैसे ही हम त्योहारी सीजन में खुशी और आनंद का जश्न मनाते हैं, हमें अपने कार्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
हमें यह देखना चाहिए कि क्या हमारे कार्य दूसरों के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। और ‘दूसरों’ में सभी जीवित प्राणियों को शामिल करना बेहद ज़रूरी है।


Source: The Telegraph, National Herald, The Print

Originally written in English by: Unusha Ahmad

Translated in Hindi by Pragya Damani

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