पाकिस्तान देश संविधान के अनुसार चार प्रांतों में बांटा गया है- पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर-पख्तुनख्वा। बलूचिस्तान, गिलगित और बाल्टिस्तान, ये पाकिस्तान के वो हिस्से हैं जो आए दिन अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में चर्चा का मुद्दा बने रहते हैं।
अवलोकन
बलूचिस्तान एक पहाड़ी इलाका है और गिलगिट-बाल्टिस्तान जिसे पहले उत्तरी क्षेत्रों के नाम से जाना जाता था पाकिस्तान का उत्तरीतम प्रशासनिक क्षेत्र है । ये कश्मीर से सटा पाकिस्तान का वो हिस्सा है जहाँ से आयी मानवाधिकार उल्लंघन की खबरें अख़बारों में पढ़ना आम बात है|
गिलगित और बाल्टिस्तान का इलाका देश के 72000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और बलूचिस्तान 796000 वर्ग किलोमीटर में फैला है ।
पाकिस्तान के बाकी प्रांतों में लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव होते हैं पर गिलगित-बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान और तथाकथित आज़ाद कश्मीर वो हिस्से हैं जहां लोकतंत्र दूर-दूर तक नज़र नहीं आता।
ये वो क्षेत्र हैं जिनपे पकिस्तान ने आज़ादी के समय जबरन कब्ज़ा करा था। क्षेत्रीय विधानसभाएं हैं तो पर उनपे केंद्रीय नियंत्रण इतना है के वो आज़ादी से काम नहीं कर सकतीं।
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गिलगित, बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान , ये तीनों स्वतंत्र राज्य हुआ करते थे जिनपे पाकिस्तान की सेना ने 1947 में जबरन कब्ज़ा कर लिया।
1949 के कराची समझौते के बाद पाकिस्तान के कश्मीर और उत्तरी क्षेत्रों के मामलों के मंत्रालय को गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान के इलाकों पर पूरा नियंत्रण मिल गया।
इन इलाकों के लोगों की आवाज़ को हमेशा दबाया गया और सरकार चलाने में कभी भी उनकी राय नहीं ली गयी, यहाँ तक की जिन बातों का उनसे सीधा सरोकार था उन बातों पर भी उनकी राय को तवज्जो नहीं दी गयी। जो अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं उनके सरेआम क़त्ल करवा दिए जाते हैं। कुछ लोगों को गायब करवा दिया जाता है।
ये सारा काम वहां सेना और उसके लोग करते हैं वो भी ऐसे के बर्बरता को देखने के बाद कोई दूसरा अपनी आवाज़ बुलंद करना तो दूर, ये करने की सोच भी न सके।
मानवाधिकारों के उल्लंघन का तो यह आलम है के यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन इंफोर्स्ड डिसअपीयरान्स की 2015 रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके में 14000 से ज़्यादा लोग लापता हैं जिनका कोई सुराग नहीं है। वहां सरेआम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या करी जाती है। इसका उदहारण 2015 में हुए सबीन महमूद का क़त्ल है। फैज़ाबाद जिला स्टैंडिंग मेडिकल बोर्ड के मुताबिक 2015 में जांचे गए 76% मामले अत्याचार के कानूनी मापदंडो पर खरे उतरते हैं।
2015 और 2016 में पूरे साल अमेरिका के राज्य के विभाग ने पाकिस्तान में हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन पर चिंता जताई। इसी कड़ी में यूरोपीय संघ और भारत ने भी इस बरबर्ता की कड़े शब्दों में निंदा की है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक मंचों से मानवाधिकार हनन से त्रस्त पाकिस्तान के हिस्सों में रहने वाली जनता का समर्थन करा है।
बलूचिस्तान, गिल्गिट और बाल्टिस्तान में भारत
पर अब जो सवाल उठता है वो ये है के भारत क्यों गिलगित, बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान के मुद्दों को इतनी तवज्जो दे रहा है।
इसकी कई अलग अलग वजहें हो सकती हैं।
आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो बलूचिस्तान में गैस, तेल और खनिज से सम्बंधित संसाधन भारी मात्रा में हैं।
अगर इन्हे भारतीय तकनीक से साथ ढूँढा, विकसित किया और उपयोग किया जाता है तो ये भारत की ऊर्जा परेशानियों से लड़ने में काफी समय तक मदद करेंगे।
कूटनीति के मामले में बलूचिस्तान, गिलगित और बाल्टिस्तान पाकिस्तान का वो इलाका है जहाँ के लोग न सिर्फ मानवाधिकार उल्लंघन की बात उठाते रहे हैं पर कई विदेशी संस्थाओं ने इसकी पुष्टि भी करी है, इसलिए ये पाकिस्तान की दुखती रग है जिसे पकड़ के हिंदुस्तान पाकिस्तान की परमाणु सेना को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर नीचा दिखा सकती है, और भारत के कूटनीतिक विशेषज्ञ और सरकार पाकिस्तान की सेना और सरकार को घुटने पर ला सकती है।
ये न सिर्फ पाकिस्तान द्वारा भारत पर लगाए जाने वाले झूठे मानवाधिकार उलंघन के आरोपों की काट है बल्कि ये एक हथियार भी है जिसकी मदद से भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से बेहतर दावा पेश कर पाता है।
इसके अलावा, बलूचिस्तान के लोगों के समर्थन की वजह से कराची से बन्दर अब्बास तक हिंदुस्तान के खिलाफ कोई नौसैनिक अड्डा नहीं बन पायेगा जो पाकिस्तान के लिए अपने आप में ही एक सैन्य हार होगी।
आखिर में पश्चिमी मोर्चे पर आक्रामकता और आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी देने के लिए पाकिस्तान का विभाजन एकमात्र तरीका है। यदि ऐसा होता है, तो भारत को सिंध और बलूचिस्तान जैसे मित्रवत पड़ोसियों के साथ छोड़ दिया जायेगा (जो, बलूचिस्तान के बाद जल्द ही मुक्त हो जायेगा ) और पाकिस्तान के उत्तराधिकारी के रूप में सिर्फ पंजाब का एक शत्रुतापूर्ण देश रह जायेगा । लेकिन चूंकि पंजाब भारत के मित्र राज्यों, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान और सिंध से घिरा होगा, ऐसे में उसे नियंत्रित करना आसान होगा।
इन सब राजनीतिक और आर्थिक वजहों से परे, मानवाधिकारों की रक्षा हर देश और उसकी सरकार का कर्तव्य है और एक ज़िम्मेदार पडोसी देश होने के नाते हिंदुस्तान की तरफ से बलूचों और गिलगित बाल्टिस्तान में रहने वालों के लिए आवाज़ उठाना न सिर्फ एक जायज़ कदम है बल्कि ये एक ऐसा कदम भी है जिससे मानवता की सुरक्षा होगी और इस कदम की सरहाना होनी चाहिए।
Image Credits : Google Images
Sources: UNPO,Wikipedia HuffPost
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