भारत के सबसे बड़े खुदरा विक्रेताओं ने ज़ेप्टो, ब्लिंकिट और स्विगी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की

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भारतीय रिटेलर्स लोकप्रिय त्वरित वाणिज्य (क्विक कॉमर्स) प्लेटफार्म जैसे स्विगी इंस्टामार्ट, ब्लिंकिट, ज़ेप्टो आदि के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

परंतु इस कार्रवाई की आवश्यकता क्यों है, और यह खतरा क्या है?

भारतीय खुदरा विक्रेता कार्रवाई की मांग क्यों कर रहे हैं?

क्विक कॉमर्स, ई-कॉमर्स, किराना रिटेल स्टोर्स आदि शब्दों पर एक त्वरित सत्र: क्विक कॉमर्स ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की एक सहायक शाखा है, जो उत्पादों की तेज डिलीवरी पर केंद्रित होती है।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म इस मामले में भिन्न होते हैं जहां वे उत्पादों को डिलीवर करने में 24 घंटे से लेकर कई दिन तक का समय ले सकते हैं, जबकि क्विक कॉमर्स कुछ मिनटों से लेकर अधिकतम कुछ घंटों के भीतर डिलीवरी का वादा करता है। भारत में क्विक कॉमर्स कंपनियों में जोमैटो, स्विगी इंस्टामार्ट, ज़ेप्टो, बिगबास्केट, ब्लिंकिट आदि नाम शामिल हैं।

किराना दुकानें छोटे स्टोर होते हैं जिनमें सीमित मात्रा में सामान होता है, जो मुख्य रूप से रोजमर्रा की जरूरतों के उत्पादों, सामान्य किराने का सामान, स्नैक्स आदि पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे एक छोटे ग्राहक समूह को सेवा प्रदान करते हैं, और हर कॉलोनी या रिहायशी इलाके में अपनी एक किराना दुकान होती है।

अब, हाल ही की खबरों में, ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीड़ीएफ), जो कि भारत का सबसे बड़ा खुदरा वितरकों का समूह है, इन प्रमुख क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स — ब्लिंकिट, स्विगी और ज़ेप्टो के खिलाफ प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के पास औपचारिक शिकायत दर्ज करने के लिए आगे आया है।

एआईसीपीड़ीएफ के तहत भारत भर में लगभग 4,00,000 खुदरा वितरक शामिल हैं, जिनमें नेस्ले और हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसे नाम शामिल हैं। 18 अक्टूबर की तारीख वाले एक पत्र में, संघ ने इन कंपनियों को आरोपित किया, यह आरोप लगाते हुए कि वे अपने उत्पादों की कीमत को अस्थिर रूप से कम रख रहे हैं, जिससे पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं के लिए प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को कमजोर कर रहे हैं।

पत्र में आरोप लगाया गया कि ये प्लेटफॉर्म एक रणनीति का उपयोग कर रहे हैं जिसे प्रिडेटरी प्राइसिंग कहा जाता है, जहां वे न केवल भारी छूट दे रहे हैं बल्कि लागत मूल्य से भी कम कीमत पर सामान बेच रहे हैं।

पत्र में यह भी कहा गया कि क्विक कॉमर्स कंपनियां पारंपरिक वितरण नेटवर्क का पालन करने के बजाय सीधे उपभोक्ता वस्त्र निर्माताओं से बातचीत कर रही हैं।

इन सभी का उनके जीवनयापन पर खतरा है और पत्र के अनुसार “ऐसे प्रथाएं पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं के लिए प्रतिस्पर्धा करना या जीवित रहना असंभव बना देती हैं।”


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त्वरित वाणिज्य कंपनियाँ एक खतरा

यह पहली बार नहीं है जब छोटे खुदरा मालिकों या किराना स्टोर मालिकों ने क्विक कॉमर्स प्लेटफार्मों के खिलाफ आवाज उठाई है और कैसे ये उनके व्यवसायों पर अनावश्यक दबाव डाल रहे हैं।

ईटी रिटेल की एक हालिया रिपोर्ट में, एलारा कैपिटल के करण तौरी ने कहा, “हमारी जांच के अनुसार, जमीन पर वितरक किराना स्टोर्स से बकाया राशि नहीं वसूल पा रहे हैं, क्योंकि डिजिटल प्लेटफार्मों के कारण किराना स्टोर्स पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है; किराना स्टोर्स उच्च स्तर का स्टॉक रखे हुए हैं और वितरकों को समय पर पैसा प्राप्त नहीं हो रहा है।”

एलारा कैपिटल के एक नोट में यह बताया गया कि देश में लगभग 15 मिलियन किराना स्टोर्स और 80 मिलियन व्यापारी-आधारित स्टोर्स हैं, जो सभी क्विक कॉमर्स कंपनियों से खतरे का सामना कर रहे हैं, और यह खतरा आधुनिक व्यापार से भी ज्यादा बढ़ चुका है।

पहले, ग्राहकों की जरूरतें आधुनिक व्यापार और किराना स्टोर्स के बीच बंटी हुई थीं, जहां आधुनिक
व्यापार अधिकतर ग्राहकों को थोक खरीदारी की सुविधा प्रदान करता था, जबकि किराना स्टोर्स उन ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करते थे जो तात्कालिक खरीदारी के लिए आते थे।

हालांकि, अब क्विक कॉमर्स प्लेटफार्म इन क्षेत्रों पर कब्जा कर रहे हैं, जो किराना स्टोर प्रारूपों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं और उनके मुनाफे में कमी कर रहे हैं।


Image Credits: Google Images

Sources: The Economic Times, Business Standard, Business Today

Originally written in English by: Chirali Sharma

Translated in Hindi by Pragya Damani

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