भारतीय छात्रों के लिए यूके विश्वविद्यालय चुनना कठिन हो सकता है; उसकी वजह यहाँ है

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यूनाइटेड किंगडम (यूके) में एक-तिहाई विश्वविद्यालय गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। इसका कारण है स्थानीय छात्रों की फीस पर सरकार द्वारा लगाया गया सीमा कैप। इस कारण, कॉलेज विदेशी छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस पर निर्भर रहते हैं, जिन पर कोई सीमा नहीं है।

भारतीय छात्र यूके में विदेशी छात्रों का सबसे बड़ा अनुपात बनाते हैं और इस नीति के कारण अत्यधिक फीस का भुगतान कर रहे हैं। हालांकि, यह योजना परस्पर लाभकारी होनी चाहिए, जो कि वास्तविकता में नहीं हो पाई है। यही कारण है कि हाल के समय में भारत से यूके के कॉलेजों में आवेदन की संख्या में काफी गिरावट आई है।

तो यह नीति काम क्यों नहीं कर रही है? इस नीति में क्या कमी है? यहाँ पूरी तस्वीर प्रस्तुत है।

ब्रिटेन के विश्वविद्यालय वित्तीय संकट से क्यों गुज़र रहे हैं?

यूके हमेशा से दुनियाभर के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने का एक सबसे मनचाहा गंतव्य रहा है। यूनिवर्सिटी यूके, जो देश के 142 विश्वविद्यालयों का एक सामूहिक समूह है, के अनुसार मार्च 2024 में समाप्त होने वाले वर्ष में मुख्य आवेदकों को 4,46,924 प्रायोजित अध्ययन वीजा और 1,39,175 स्नातक-रूट वीजा जारी किए गए।

हालांकि, अब ये संस्थान बड़े पैमाने पर वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं। पिछले शैक्षणिक वर्ष में, यूके के लगभग एक-तिहाई विश्वविद्यालयों ने घाटे में काम किया। इसका कारण स्थानीय छात्रों के लिए मौजूद फीस सीमा है, जिसे पिछले एक दशक से ढीला नहीं किया गया है।

पिछले साल, उच्च शिक्षा मंत्री रॉबर्ट हैल्फन ने स्थानीय छात्रों की ट्यूशन फीस पर सीमा हटाने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था, बावजूद इसके कि कुलपतियों ने घटते हुए धन के बारे में चेतावनी दी थी। टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि हालांकि विश्वविद्यालय चुनौतियों का सामना कर रहे थे, ट्यूशन फीस में वृद्धि “किसी भी स्थिति में संभव नहीं थी, अगले कई वर्षों तक नहीं।”

घरेलू छात्रों के लिए फीस को 2012 में £9,000 पर सीमित कर दिया गया था और 2017 तक केवल £9,250 तक बढ़ाया गया। यदि यह राशि मुद्रास्फीति के साथ मेल खाती, तो यह आज £12,000 से अधिक हो जाती।

इसलिए, कॉलेज विदेशी छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस पर भारी निर्भर रहते हैं, जिन पर किसी भी प्रकार की सीमा नहीं है। ये छात्र स्थानीय छात्रों की तुलना में लगभग दुगुना ट्यूशन फीस देते हैं।

इस कारण, पिछले दो वर्षों में विदेशी छात्रों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है, जिससे कॉलेज के फंड और कम हो गए हैं। एक रिपोर्ट का दावा है कि अंतरराष्ट्रीय आवेदनों में 16% की गिरावट शिक्षा क्षेत्र की आय में £1 बिलियन की कमी ला सकती है।

इसका भारतीय छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

हाउस ऑफ कॉमन्स की ई-लाइब्रेरी के अनुसार, भारत ने 2022-23 में 1,26,600 छात्रों के प्रवेश के साथ उच्च शिक्षा के लिए यूके में छात्रों को भेजने के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया।

यूके में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए फीस में बढ़ोतरी का प्रभाव भारतीय छात्रों पर पड़ रहा है क्योंकि वे वहां विदेशी छात्रों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं, और उनके द्वारा दी गई फीस स्थानीय छात्रों की शिक्षा को सब्सिडी देने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। यह नीति काफी लंबे समय से लागू थी, लेकिन अब विदेशी छात्रों पर लगाए गए और प्रतिबंधों के कारण इसके प्रतिकूल परिणाम सामने आ रहे हैं।


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पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सख्त इमिग्रेशन नीतियां यूके में विश्वविद्यालयों के वित्तीय संकट के मुख्य कारणों में से एक हैं। पिछली सरकार की नीतियों ने विदेशी छात्रों को अपने परिवारों को साथ लाने से हतोत्साहित किया और वर्क वीजा के लिए वेतन सीमा को भी बढ़ा दिया।

आंकड़े बताते हैं कि इन नीतियों ने अपने लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। 2024 की पहली तिमाही में, अंतरराष्ट्रीय छात्र वीजा आवेदनों में 44% की गिरावट आई, जिससे विश्वविद्यालयों के फंडिंग संकट को और बढ़ावा मिला।

इस साल यूके जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 23% की गिरावट हुई, जबकि पिछले छह महीनों में 3,500 से अधिक यूके अध्ययन वीजा रद्द किए गए।

कौन सी नीतिगत कार्रवाइयां आवश्यक हैं?

अंतरराष्ट्रीय छात्रों की फीस बढ़ाकर घरेलू छात्रों की सब्सिडी के लिए और विश्वविद्यालयों में बुनियादी ढांचे व क्षमता-विकास परियोजनाओं के लिए कोष बनाए रखना तभी सफल हो सकता है, जब यह भुगतानकर्ता और प्राप्तकर्ता दोनों के लिए लाभकारी हो।

विदेशी छात्रों पर सख्त नियमों के कारण वे उच्च-रैंक वाले कॉलेजों में प्रवेश नहीं पा रहे, अच्छी वेतन वाली नौकरियां सुरक्षित नहीं कर पा रहे और अपने छात्र ऋण का भुगतान करने में भी असमर्थ हो रहे हैं। यही कारण है कि इनकी संख्या घट रही है।

द फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में विश्वविद्यालयों के शोध कार्यों में £5.3 बिलियन का घाटा देखा गया।

जल्द ही एक स्थायी और सुव्यवस्थित समाधान की आवश्यकता है ताकि विश्वविद्यालय अपनी वैश्विक पहचान न खोएं और छात्रों पर वित्तीय बोझ न पड़े।


Image Credits: Google Images

Sources: The Guardian, The Economic Times, The Hindu

Originally written in English by: Unusha Ahmad

Translated in Hindi by Pragya Damani

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