अजमेर शरीफ दरगाह और संभल हिंसा के हालिया मुद्दे ने देश में समुदायों के बीच काफी बहस पैदा कर दी है।
यह सब सितंबर में दिल्ली स्थित हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा स्थानीय अजमेर कोर्ट में दायर याचिका से शुरू हुआ। याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से यह सत्यापित करने के लिए सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी कि दरगाह के निर्माण से पहले वहां कोई मंदिर था या नहीं।
अजमेर दरगाह मामला क्या है?
याचिका में दावा किया गया है कि 13वीं शताब्दी के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर एक शिव मंदिर था और इसे हिंदू पूजा स्थल घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही, दरगाह के आधिकारिक पंजीकरण को रद्द करने और इसकी पुष्टि के लिए एएसआई सर्वेक्षण की मांग की गई है।
विष्णु गुप्ता ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “हमारी मांग है कि अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाए और अगर दरगाह का किसी तरह का पंजीकरण है तो उसे रद्द किया जाए। इसका सर्वेक्षण एएसआई के माध्यम से किया जाना चाहिए और हिंदुओं को वहां पूजा करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।”
रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में हिंदू सेना की कानूनी टीम के सदस्य एडवोकेट योगेश सुरोलोया ने पूर्व न्यायिक अधिकारी और शिक्षाविद हर बिलास सारदा द्वारा लिखित 1911 की पुस्तक ‘अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक’ की एक प्रति प्रस्तुत की।
रिपोर्ट के अनुसार, इस पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि “दरगाह के निर्माण में स्थल पर ‘पहले से मौजूद’ शिव मंदिर के अवशेषों का उपयोग किया गया था।” अधिवक्ता राम स्वरूप बिश्नोई ने यह भी कहा, “हमने अदालत को बताया कि मंदिर के ध्वस्त होने से पहले तक वहां लगातार धार्मिक अनुष्ठान होते रहे थे,” जबकि एएसआई सर्वेक्षण की मांग करने वाले तीसरे वकील विजय शर्मा ने यह सत्यापित करने की मांग की कि क्या दरगाह के गुंबद में “मंदिर के टुकड़े” हैं और “तहखाने में गर्भगृह की उपस्थिति के सबूत हैं।”
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बहस की शुरुआत
अजमेर की निचली अदालत द्वारा याचिका स्वीकार किए जाने और अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और नई दिल्ली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी किए जाने के बाद बहस शुरू हुई।
सिविल जज मनमोहन चंदेल की अध्यक्षता वाली अदालत ने 27 नवंबर को नोटिस जारी किए, जिससे गरमागरम बहस और चर्चा शुरू हो गई।
दरगाह के वंशानुगत खादिमों (देखभाल करने वालों) के प्रतिनिधि निकाय अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने इस मामले पर बोलते हुए कहा, “दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव, विविधता और बहुलवाद का प्रतीक है। यह एकता और विविधता को बढ़ावा देती है। साथ ही, यह अफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक के लोगों के लिए एक विशाल इस्लामी तीर्थ स्थल भी है। इसके करोड़ों अनुयायी हैं। यह कोई मज़ाक नहीं है और हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। अगली सुनवाई की तारीख 20 दिसंबर है।”
चिश्ती ने आगे कहा, “बाबरी मस्जिद के बाद हमने कड़वी गोली खा ली और सोचा कि ऐसा दोबारा नहीं होगा। लेकिन यह रुकने वाला नहीं है। कभी काशी, कभी मथुरा… 22 जून को मोहन भागवत जी ने कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाशी नहीं होनी चाहिए। यह भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश [डी.वाई.] चंद्रचूड़ की गलती है। जब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 कहता है कि बाबरी मस्जिद को छोड़कर सभी धार्मिक स्थलों पर 1947 की यथास्थिति बनी रहेगी, तो इसकी क्या जरूरत है?”
यह नोटिस देशभर में हो रही अन्य घटनाओं, खासकर उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा को देखते हुए जारी किया गया है। यह हिंसा तब भड़की जब कोर्ट ने एक और मुगलकालीन दरगाह का एएसआई सर्वे करने का आदेश दिया। इससे अजमेर के लोग चिंतित हैं। अजमेर सांप्रदायिक अशांति का एक और स्थान बन गया है।
दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को तनाव में आने की जरूरत नहीं लगती। उनका दावा है कि सर्वे का आदेश कोर्ट ने दिया है।
उन्होंने कहा, “कोर्ट ने अजमेर में सर्वे का आदेश दिया है। अगर कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया है तो इसमें क्या दिक्कत है? यह सही है कि जब मुगल भारत आए तो उन्होंने हमारे मंदिरों को तोड़ दिया। कांग्रेस सरकार ने अब तक सिर्फ तुष्टीकरण किया है। अगर (जवाहरलाल) नेहरू ने 1947 में ही इसे रोक दिया होता तो आज कोर्ट जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।”
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “दरगाह शरीफ वहां (अजमेर) 800 साल से है। देश का हर प्रधानमंत्री उर्स के दौरान दरगाह के लिए चादर भेजता है। यह सब कहां रुकेगा? पूजा स्थल अधिनियम 1991 का क्या होगा? यह देश को अस्थिर करने के लिए किया जा रहा है… मैं बार-बार कह रहा हूं कि ये चीजें देश के पक्ष में नहीं हैं। ये लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा, आरएसएस से जुड़े हुए हैं…”
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने ज्ञानवापी फैसले के साथ ‘पेंडोरा का पिटारा’ खोलने के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की निंदा की।
यह अगस्त 2023 में पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच द्वारा पारित आदेश को संदर्भित करता है, जिसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, और इस प्रकार एएसआई को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी, ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि वहां पहले कोई मंदिर था या नहीं।
मुफ़्ती ने कहा, “भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बदौलत भानुमती का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को लेकर एक विवादास्पद बहस शुरू हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बावजूद कि 1947 की यथास्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए, उनके निर्णय ने इन स्थलों के सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे संभावित रूप से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ सकता है।”
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी ट्विटर पर ट्वीट किया, “चिंताजनक। नवीनतम दावा: अजमेर दरगाह में शिव मंदिर। हम इस देश को कहाँ ले जा रहे हैं? और क्यों? राजनीतिक लाभ के लिए!”
आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह ने भी कहा, “भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। 1991 के पूजा स्थल अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी धार्मिक संरचनाएँ, चाहे वे किसी भी धर्म की हों – हिंदू धर्म या इस्लाम – 15 अगस्त 1947 के बाद वैसी ही रहेंगी जैसी वे थीं। अगर यह कहने की मिसाल कायम की जाती है कि मंदिर के नीचे मस्जिद थी या मस्जिद के नीचे मंदिर था, तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा चाहते हैं कि पूरा देश लड़े और इसीलिए मैं इसे भारतीय झगड़ा पार्टी कहता हूं।”
Image Credits: Google Images
Sources: The Economic Times, The Hindu,
Originally written in English by: Chirali Sharma
Translated in Hindi by Pragya Damani
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