पिछले ही दिन मेरे अध्यापक अपने कुछ उच्च-आय वाले रिश्तेदारों के बारे में बात कर रहे थे जो 9-5 की कड़ी मेहनत करते थे, और कई बार उससे भी आगे। लेकिन लंबे समय तक काम करने के घंटे उचित हैं, क्योंकि उन्ही की वजह से अच्छी आय होती है।
लेकिन अगर यह स्वास्थ्य, खुशी और कर्मचारियों की ऊर्जा की कीमत पर आता है, तो यह पैसा किस काम का?
औद्योगिकीकरण के आगमन ने हमें सामूहिक रूप से यह विश्वास दिलाया है कि यह पैसा है जो देश की अर्थव्यवस्था में मायने रखता है और योगदान देता है। लोगों का स्वास्थ्य और भलाई उसके लिए गौण है।
हमारी गड़ना कुछ ज़रूरी पहलुओं को नज़रअंदाज़ करती है।
हमारे पड़ोसी भूटान ने इस तरह से किया विकास का उपाय:
भारत और चीन के बीच बसा भूटान एक संप्रभु राष्ट्र है और यह उन कुछ देशों में से एक है जिनका उपनिवेशीकरण नहीं हुआ है। देश मुख्य रूप से बौद्ध है और संवैधानिक राजतंत्र के माध्यम से शासित है।
अपने आर्थिक विकास को मापने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का उपयोग करने के बजाय, भूटान अपने विकास की दर मापने के लिए सकल राष्ट्रीय खुशी (GNH) का उपयोग करता है।
1971 में, भूटान ने अपने देश के विकास का आकलन करने के लिए जीडीपी को उनके सूचकांक के रूप में खारिज कर दिया, और इसके बजाय जीएनएच का उपयोग करने लगे, जो अपने नागरिकों के आध्यात्मिक, सामाजिक, मानसिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के संबंध में विकास को मापेगा।
इसके पीछे यह विचार है कि, प्रत्येक नागरिक की भलाई और संतोष राष्ट्र के समग्र मौद्रिक लाभ की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
जीएनएच को हर पांच साल में मापा जाता है। यह इन 9 चीज़ों के आधार पर तय होता है:-
मनोवैज्ञानिक स्वस्थ्य
स्वास्थ्य
शिक्षा
समय का सदुपयोग
सांस्कृतिक विविधता और लचीलापन
सुशासन
सामुदायिक जीवन शक्ति
पारिस्थितिक विविधता और लचीलापन
जीवन स्तर
प्रकृति के लिए श्रद्धा:
भूटान का लक्ष्य अपनी भूमि का लगभग 60% भाग जंगल के दायरे में रखना है। परिणामस्वरूप, लोग प्रकृति से सीखते हैं और इसके संरक्षण में भी योगदान देते हैं।
इसके अलावा, हर साल, वहां एक “पैदल यात्री दिवस” होता है, जहाँ लोगों से अपील की जाती है कि वे ऑटोमोबाइल का इस्तेमाल न करें और पैदल ही अपने-अपने गंतव्यों तक यात्रा करें।
शिक्षाविदों के साथ-साथ बच्चों को टिकाऊ कृषि पद्धतियां सिखाई जाती हैं। साथ ही, शिक्षा विज्ञान और गणित जैसे दैनिक विषयों तक सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास के लिए भी है और इसमें ध्यान और प्रार्थना जैसे अभ्यास शामिल हैं।
हमारे लिए सीखने की बातें
तकनीकी रूप से उन्नत टेक्नोलॉजी और पैसे कमाने पर जोर देने वाली दुनिया में यह छोटा सा देश एक उदाहरण ध्यान देने योग्य है।
यह कहना उचित नहीं होगा की हर किसी को यह विकासात्मक सूचकांक को अपनाना चाहिए, लेकिन कम से कम, हम अपने मानसिक कल्याण पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
जहां तक भारत का संबंध है, यह जानकर दुख होता है कि वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2019 में भारत 140वे पायदान पर है, जो चीन और यहां तक कि पाकिस्तान से भी पीछे है। शायद, हम भारतीयों को अपने दिमाग से तनाव दूर करने की जरूरत है और हमारी खुशी और स्वास्थ्य को नौकरियों से पहले रखने की हमें कोशिश करनी चाहिए।
Image Sources: Google Images
Sources: OPHI, GNH Centre Bhutan, The Guardian
Originally Written By: @Rhetorician_rc
Translated In Hindi By: @innocentlysane
Other Recommendations:
Putin Slammed Greta Thunberg Saying “Go Explain This To Developing Countries”: Does He Have A Point?