क्या रिलायंस सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में जियो जैसा कारनामा करने की कोशिश कर रहा है?

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एक चौंकाने वाली वापसी में, मुकेश अंबानी की रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (आरसीपीएल) ने 1970 और 80 के दशक के प्रतिष्ठित सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड कैम्पा कोला को फिर से लॉन्च किया है, जो भारत में कोका-कोला और पेप्सिको के लिए एक मजबूत चुनौती के रूप में उभर रहा है।

जियो के साथ टेलीकॉम सेक्टर में अपनाई गई आक्रामक रणनीतियों के लिए मशहूर रिलायंस ने कोला बाजार में फिर से प्रवेश किया है, और इसकी योजनाएं उसी प्लेबुक की याद दिलाती हैं।

कम कीमत, विशाल वितरण नेटवर्क, और नॉस्टैल्जिया पर आधारित अपील के साथ, कैम्पा कोला भारतीय उपभोक्ताओं के दिलों और जेबों पर कब्जा जमाने की तैयारी कर रहा है, जिससे भारत के $4.6 बिलियन सॉफ्ट ड्रिंक बाजार को नया आकार मिलने की संभावना है।

कीमत का दम

रिलायंस की आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति बाजार को बाधित करने के लिए तैयार है, जिससे कोका-कोला, पेप्सिको और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी स्थानीय कंपनियों के बीच हलचल मच गई है।

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250 मि.ली. की बोतल सिर्फ ₹10 में उपलब्ध कराने के साथ—जो मुख्य प्रतिस्पर्धियों की कीमत से आधी है—कैम्पा कोला ने कंपनियों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। इसके साथ ही, यह रिटेलर्स को भी आकर्षक प्रॉफिट मार्जिन प्रदान कर रहा है।

स्थानीय किराना दुकानों को अधिक ट्रेड मार्जिन देकर, कैम्पा कोला न केवल उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम कर रहा है, बल्कि छोटे खुदरा विक्रेताओं के साथ साझेदारी कर भारतीय बाजार में अपनी जगह पक्की कर रहा है। द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, “स्थानीय साझेदारी का यह दृष्टिकोण कैम्पा कोला के विस्तार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह खुदरा विक्रेताओं को अधिक मुनाफा कमाने का मौका देता है और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती वैकल्पिक उत्पाद पेश करता है।”

पहले अपने पेय पदार्थों की कीमतें प्रतिस्पर्धियों से 20-30% अधिक रखने वाली टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स ने हाल ही में अपने दाम घटाए हैं ताकि कैम्पा कोला की कम-कीमत वाली रणनीति के सामने बाजार में अपनी पकड़ न खोए। इसके अलावा, कैम्पा कोला के त्योहारी सीजन के दाम—200 मि.ली. के लिए ₹10 और 500 मि.ली. के लिए ₹20—ने बजट के प्रति संवेदनशील उपभोक्ताओं के साथ खास जुड़ाव बनाया है। इससे रिलायंस ने शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है।


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कैम्पा कोला कैसे रिलायंस की टेलीकॉम रणनीति को दर्शाता है

2016 में रिलायंस जियो के टेलीकॉम बाजार में प्रवेश की तरह, जहां उसने आक्रामक कीमतों और मुफ्त सेवाओं के जरिए प्रतिस्पर्धा को कमजोर किया था, कैम्पा कोला की वापसी भी सॉफ्ट ड्रिंक उद्योग को अस्थिर करने के लिए तैयार है।

जियो के फ्री वॉयस और कम कीमत वाले डेटा ने वोडाफोन और आइडिया को विलय के लिए मजबूर किया और अन्य कंपनियों को बाजार से बाहर कर दिया। इसी तरह, कैम्पा कोला की किफायती कीमतें पेप्सी और कोका-कोला जैसी कंपनियों पर दबाव डाल सकती हैं, जिससे वे बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए अपनी कीमतें कम करें और संभावित रूप से मुनाफे का बलिदान करें।

रिलायंस ने आरसीपीएल (रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड) के एफएमसीजी उत्पादों में 3,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जिसमें कैम्पा कोला पहले साल में ही 400 करोड़ रुपये का योगदान देगा। इसके अलावा, कंपनी ने पूरे भारत में बॉटलिंग प्लांट स्थापित करने के लिए 500-700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और आपूर्ति की बाधाएं कम होंगी। यह जियो के टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की रणनीति को दर्शाता है।
द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक यूरोमॉनिटर कंसल्टेंट ने कहा, “रिलायंस की वित्तीय ताकत और राष्ट्रीय पहुंच इसे पारंपरिक बाजार नेताओं के लिए एक अनूठा खतरा बनाती है।”

कैम्पा कोला की मार्केटिंग रणनीति का केंद्र

रिलायंस का सबसे चतुर कदम कैम्पा कोला के नॉस्टैल्जिया मूल्य का उपयोग करना है, जो इसे “घरेलू” ब्रांड के रूप में पेश करता है और भारतीय उपभोक्ताओं की स्थानीय उत्पादों पर गर्व की भावना को बढ़ावा देता है।
कोका-कोला और पेप्सी के भारत में प्रवेश से पहले लोकप्रिय रहे इस ब्रांड को “भारतीय विकल्प” के रूप में पुनः स्थापित किया गया है।

2022 में, मुकेश अंबानी ने इसे 22 करोड़ रुपये में खरीदा और इसे भारतीय पहचान के प्रतीक के रूप में रीब्रांड किया। यूरोमॉनिटर के अनुसार, भारत का $4.6 बिलियन का सॉफ्ट ड्रिंक बाजार 2027 तक हर साल 5% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे कैम्पा कोला को एक बड़ा हिस्सा हासिल करने का मौका मिलेगा, खासकर उन उपभोक्ताओं के बीच जो एक भारतीय विकल्प की तलाश में हैं।

रिलायंस के विशाल रिटेल नेटवर्क, जिसमें रिलायंस फ्रेश और जियोमार्ट शामिल हैं, ने प्रमुख शहरों और छोटे कस्बों दोनों में कैम्पा की पहुंच को बढ़ाया है। यह रणनीति ब्रांड की स्थानीय अपील को मजबूत करती है, जिससे यह केवल एक कोला विकल्प नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक बयान बन जाता है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है, “रिलायंस उपभोक्ताओं को भावनाओं और कीमतों के मिश्रण से जोड़ने पर दांव लगा रहा है—एक शक्तिशाली संयोजन जो भारतीय गर्व और पुरानी यादों से प्रेरणा लेता है।”

क्या रिलायंस बन सकता है संभावित एकाधिकार?

टेलीकॉम, डिजिटल मीडिया और अब एफएमसीजी सहित कई क्षेत्रों में रिलायंस का वर्चस्व संभावित एकाधिकार प्रथाओं को लेकर चिंताएं बढ़ा रहा है।

जैसे जियो की आक्रामक कीमतों ने प्रतिस्पर्धियों को विलय करने या बाजार छोड़ने के लिए मजबूर किया, कैम्पा कोला की कम कीमतें कोका-कोला और पेप्सीको को या तो अपनी कीमतें कम करने या बाजार हिस्सेदारी खोने के लिए मजबूर कर सकती हैं।

रिलायंस के वित्तीय संसाधन और व्यापक वितरण नेटवर्क को देखते हुए, उद्योग पर्यवेक्षकों को डर है कि कंपनी सॉफ्ट ड्रिंक उद्योग पर एकाधिकार कर सकती है, जिससे छोटे खिलाड़ियों या नए प्रवेशकों के लिए बहुत कम जगह बचती है।

यह तेजी से बढ़ने वाली रणनीति उपभोक्ता विकल्पों को भी कम कर सकती है, क्योंकि कम कीमतों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ कंपनियां बाजार से बाहर हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है, “स्केल हासिल करने के लिए रिलायंस की कम कीमत वाली रणनीति बाजार प्रतिस्पर्धा और विविधता को खतरे में डाल सकती है।”

कैम्पा कोला के साथ, रिलायंस इंडस्ट्रीज एक नए प्रकार के कोला युद्ध का मंच तैयार कर रही है—जो विज्ञापन अभियानों के बजाय कीमत और स्थानीय पहचान से प्रेरित है।

कैम्पा कोला की कम कीमत और उच्च नॉस्टैल्जिया पोजिशनिंग ने भारतीय पेय उद्योग को पहले ही बाधित कर दिया है, जिससे प्रतिस्पर्धियों को अपनी मूल्य निर्धारण मॉडल और प्रचार रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ा है।

जैसे-जैसे रिलायंस अपने आक्रामक बाजार रणनीति पर जोर देता है, एफएमसीजी क्षेत्र पर कंपनी का प्रभाव बढ़ता हुआ प्रतीत होता है, जो उपभोक्ताओं को किफायती विकल्प प्रदान करता है लेकिन संभावित एकाधिकार नियंत्रण की चिंताओं को भी बढ़ाता है।

जियो के टेलीकॉम क्षेत्र में व्यापक प्रभाव की तरह, कैम्पा कोला की वापसी आने वाले वर्षों में भारत के पेय बाजार को फिर से आकार दे सकती है, जो लंबे समय से बहुराष्ट्रीय दिग्गजों के प्रभुत्व में रहा है।


Image Credits: Google Images

Sources: Economic Times, Times of India, India.com

Originally written in English by: Katyayani Joshi

Translated in Hindi by Pragya Damani

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