1886 में जॉन स्टिथ पेम्बर्टन द्वारा स्थापित कोका-कोला कंपनी बहुत लंबे समय से नाम कमा रही है। यह दुनिया की सबसे बड़ी शीतल पेय कंपनियों में से एक है और दुनिया भर में इसकी अधिक पहुंच के कारण यह उपभोक्ता पूंजीवाद के विकास का अभिन्न अंग रही है।

कोका-कोला ने 1950 के दशक में भारतीय बाजार में प्रवेश किया था, उस समय जब दुनिया भर में पूंजीवाद फैल रहा था। हालाँकि, भारत भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की समाजवादी भावनाओं का पालन करते हुए, एक समाजवादी गणराज्य की स्थापना करने का प्रयास कर रहा था।

कोका-कोला को सबसे बड़े पूंजीवादी समूह के रूप में जाना जाता है और इसकी शोषणकारी प्रकृति के लिए आलोचना की गई है।

कोका-कोला ने भारत में खुद को कैसे स्थापित किया?

कोका-कोला भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग रहा है। एक व्यक्ति भारतीय राजनीती और आर्थिक जगत का झुकाव स्वतंत्रता के बाद बदलता हुआ देख सकता है। 

कोका-कोला भारत में आयी (समाजवाद)

कोका-कोला ने 1956 में नई दिल्ली में अपनी पहली कंपनी की स्थापना की। चूंकि उस समय भारत में विदेशी मुद्रा अधिनियम नहीं था, इसलिए यह 100% इक्विटी के तहत संचालित होता था। स्वतंत्रता संग्राम में कम्युनिस्ट प्रभाव और समाजवादी सुधारों के उपक्रम थे। इसका मतलब था कि स्थानीय व्यवसायों को अधिक महत्व मिलेगा और बाजार केंद्रीकृत होगा।

हालाँकि, जवाहरलाल नेहरू ने 1948 के औद्योगिक नीति प्रस्ताव में मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रस्ताव रखा। 

जे.आर.डी. टाटा सहित एक पैनल द्वारा प्रस्तावित बॉम्बे प्लान को जल्द ही नेहरूवादी लोकतंत्र में शामिल कर लिया गया, जिसमें स्वदेशी उद्योगों की रक्षा पर जोर दिया गया, साथ ही सरकार द्वारा नियंत्रित सार्वजनिक क्षेत्र के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया गया, जिसने निजी संपत्ति के साथ समाजवाद की अरुचि का डर दूर किया।

इसने कोका-कोला जैसी कंपनियों को भारत आने की अनुमति दी। सुदूर-वाम समूहों ने गुप्त रूप से पूंजीवादी होने की इन योजनाओं की आलोचना की है। हालाँकि, भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वृद्धि दूसरी पंचवर्षीय योजना के बाद ही बढ़ी क्योंकि इसने भारी औद्योगीकरण पर जोर दिया।


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जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं (लोकतंत्र का पतन)

भारतीय लोकतंत्र में उनके नेतृत्व में तेजी से बदलाव हुए। कोका-कोला उस समय भारतीय समाज में व्याप्त हो गया था।

हालांकि, आपातकाल की स्थिति के साथ चीन और पाकिस्तान के साथ युद्धों के बाद, नई समाजवादी सरकार को कुछ बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इंदिरा गांधी ने विदेशी मुद्रा अधिनियम लागू किया जिसने विदेशी कंपनियों को भारत में अपनी इक्विटी हिस्सेदारी का 40% निवेश करने की आवश्यकता बताई।

जनता पार्टी ने उनके साथ मिलकर उन्हें एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें उन्हें अन्य कंपनियों के साथ नुस्खा साझा करना होगा, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप, कोका-कोला को 1977 में भारत से बाहर कर दिया गया था।

स्थानीय भारतीय उद्योग उस समय संपन्न हुए। वे जल्दी से प्रतियोगिता में शामिल हो गए। भारतीय कंपनी डबल सेवेन बाजार पर छा गयी। 

1991 का अर्थव्यवस्था का उदारीकरण (पूंजीवाद)

इसका उद्देश्य व्यवसाय में सरकारी हस्तक्षेप को कम करना और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भारत को खोलना था। भारत नेहरूवादी विरासत से बहुत दूर था।

कोका-कोला ने फिर से वापसी की, 1999 में अन्य छोटी सोडा कंपनियों को प्राप्त किया। उन्होंने पारले के साथ लिम्का, थम्स अप और गोल्ड स्पॉट खरीदा। इसकी एकमात्र अन्य प्रत्योगी पेप्सी है। इसके पास आज भारत में लगभग 200 संयंत्र हैं और एक मिलियन भारतीयों का विश्वास है।

कोका-कोला ने एक दोस्ताना ब्रांड छवि रखने में कामयाबी हासिल की है, जो इसे हमारी रोजमर्रा की जीवनशैली और संस्कृति का हिस्सा बनाती है।

हालाँकि, यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि यह हमारे उपभोक्ता लालच को दूर करने वाली एक और कंपनी है।


Image Credits: Google Images

Sources: The GuardianLiveMintFirstPost+ more

Originally Written in English By: @aiswaryanil

Translated in Hindi By: @innocentlysane

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